दाढ़ी के साथ संस्कृत वाला हूं कहने वाले संस्कृत के प्रोफेसर असहाब अली अब नही रहे

रिपोर्ट – इब्राहिम अली
दैनिक महराजगंज
महराजगंज जिले के जमुनिया गांव निवासी असहाब अली गोरखपुर विश्विद्यालय के संस्कृत के 32 सालों तक प्रोफेसर रहे । उन्होंने संस्कृत से इंटरमीडिएट में टॉप कर जिले का मान बढ़ाया था। उसके बाद संस्कृत में ग्रेजुएशन किया और वेदों पर स्पेशलाइजेशन विषय पर पोस्ट ग्रेजुएशन किया।
इन्होंने ‘वैदिक व इस्लामिक मिथकों पर तुलनात्मक अध्ययन’ पर शोध भी किया, इस शोध के दौरान ही इन्होंने विश्विद्यालय में पढ़ाना शुरू कर दिया। इन्हें विश्विद्यालय में 1977 में नियुक्ति मिली और 2011 तक इन्होंने यहां संस्कृत के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया।
प्रोफेसर असहाब अपनी वेवाक जबाब के लिए जाने जाते रहे है जब 2019 में बीएचयू में विद्या धर्म विज्ञान संकाय में असिस्टेंट प्रफेसर डॉ फिरोज की नियुक्ति को लेकर छात्र विरोध कर रहे थे उस समय प्रो असहाब ने कहा था कि किसी भी शिक्षक को क्लास के अंदर परखा जाता है। इससे बाहर, जाति धर्म मजहब के लिए शिक्षक को जज करना गलत है।
वही इनके बारे में एक वाकया बहुत प्रचलित है,एक बार प्रो असहाब शिब्ली कॉलेज में संस्कृत के सिलेक्शन के लिए गए हुए थे, वहां किसी ने तंज कसते हुए कहा कि संस्कृत का सेलेक्शन करना है,फ़ारसी का नही। इसपर असहाब ने जवाब दिया, मैं दाढ़ी के साथ ही संस्कृत वाला ही हूं।
असहाब के बेटे डॉ औसाफ़ अली ने बताया कि उनके अब्बा ने छोटी उम्र में ही ‘ हिन्दू ग्रन्थों जैसे रामायण, महाभारत, सुखसागर आदि का अध्ययन किया। असहाब के इंतकाल के बाद उन्हें शनिवार को गोरखनाथ के एक कब्रिस्तान में दफन किया गया है।