युवाओं के प्रेरणास्त्रोत, विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद जी की जयंती के अवसर पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री आदरणीय श्री अखिलेश यादव जी के निर्देश पर आज ग्राम सभा बौलिया राजा में युवा घेरा कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए छात्र संघ के पूर्व उपाध्यक्ष सूरज यादव ने कहा कि स्वामी विवेकानंद केवल अध्यात्म की चर्चा ही नहीं करते थे बल्कि उसे सामाजिक सरोकारों से भी जोड़ते थे। उनके राष्ट्रवाद में वंचितों के प्रति त्याग, समर्पण और सेवा का विशेष महत्व था। साम्प्रदायिकता और जातीयता को वे देश के विकास में घातक समझते थे। स्वामी जी लोकतंत्र की मूल भावना, सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति पर विशेष बल देते थे।
लेकिन आज भाजपा की सरकार स्वामी जी सोच के विपरीत कार्य कर रही है।
श्री यादव ने कहा कि युवा आज मंहगी होती शिक्षा, बेरोजगारी,सरकारी भर्ती में धांधली,शिक्षा क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप, छात्रसंघो के चुनाव, शिक्षा संस्थाओं में खास विचारधारा का प्रचार, मंहगी फीस, आनलाइन शिक्षा में विसंगतियां से परेशान हैं। निर्दोष युवाओं पर फर्जी केस तथा एनएसए लगाकर जेलो में ठूसा जा रहा है। महिलाओं-बच्चियों से दुष्कर्म, ध्वस्त कानून व्यवस्था, गरीब पिछड़े और अनुसूचित जाति के छात्रों की उपेक्षा की जा रही है।
युवाओ से लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक कहानी बताते हुए सूरज यादव ने कहा कि एक बार स्वामी विवेकानंद अपने आश्रम में सो रहे थे। कि तभी एक व्यक्ति उनके पास आया जो कि बहुत दुखी था और आते ही स्वामी विवेकानंद के चरणों में गिर पड़ा और बोला महाराज मैं अपने जीवन में खूब मेहनत करता हूँ हर काम खूब मन लगाकर भी करता हूँ फिर भी आज तक मैं कभी सफल व्यक्ति नहीं बन पाया।
उस व्यक्ति कि बाते सुनकर स्वामी विवेकानंद ने कहा ठीक है। आप मेरे इस पालतू कुत्ते को थोड़ी देर तक घुमाकर लाये तब तक आपके समस्या का समाधान ढूँढ़ता हूँ इतना कहने के बाद वह व्यक्ति कुत्ते को घुमाने के लिए चल गया। और फिर कुछ समय बीतने के बाद वह व्यक्ति वापस आया। तो स्वामी विवेकानंद ने उस व्यक्ति से पूछ की यह कुत्ता इतना हाँफ क्यों रहा है। जबकि तुम थोड़े से भी थके हुए नहीं लग रहे हो आखिर ऐसा क्या हुआ ?
इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि मैं तो सीधा अपने रास्ते पर चल रहा था जबकि यह कुत्ता इधर उधर रास्ते भर भागता रहा और कुछ भी देखता तो उधर ही दौड़ जाता था. जिसके कारण यह इतना थक गया है ।
इसपर स्वामी विवेकानंद ने मुस्कुराते हुए कहा बस यही तुम्हारे प्रश्नों का जवाब है. तुम्हारी सफलता की मंजिल तो तुम्हारे सामने ही होती है. लेकिन तुम अपने मंजिल के बजाय इधर उधर भागते हो जिससे तुम अपने जीवन में कभी सफल नही हो पाए. यह बात सुनकर उस व्यक्ति को समझ में आ गया था। की यदि सफल होना है तो हमे अपने मंज़िल पर ध्यान देना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद के इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है की हमें जो करना है। जो कुछ भी बनना है। हम उस पर ध्यान नहीं देते है , और दूसरों को देखकर वैसा ही हम करने लगते है। जिसके कारण हम अपने सफलता के मंज़िल के पास होते हुए दूर भटक जाते है। इसीलिए अगर जीवन में सफल होना है ! तो हमेशा हमें अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए !।